पहले जैसा ही दुखी है आज भी बूढ़ा कबीर
कोई आयत के मुखालिफ कोई सूरत के खिलाफ
बडी विडंबना होती है जब समाज में ऐसी स्थितियां मौजूद हो और इनसान सांप्रदायिकता, धर्म कट्टरता और भेदभाव से उपर उठकर सोच नहीं पाता हो। समय के साथ हर दौर की अपनी एक सीमाएं और परिभाशाएं होती हैं। जो गुजर गया उस दौर में भी कुछ विपरीत स्थितियां थी, जो वर्तमान बनकर साथ चल रहा है उस दौर में भी कुछ उथल-पुथल है और जो आएगा वो दौर भी अपनी परिस्थितियां के उपर निर्भर होगा। समय के इस सिलसिले में कायम रहना इनसान की मजबूरी रही है। कई बार देखा सूना सच भी जीने के लिए झूठलाना पडता है। कई बार दुनिया की यही हकीकत है, यह सोचकर दिल को बहलाना पड़ता है, लेकिन जब कोई षायर इन स्थितियों को अपने नजरिये से देखता है तो बेसाख़्ता कह उठता है
जैसी जिसे दिखे ये दुनिया वैसी उसे दिखाने दो,
अपनी अपनी नजर है सबकी, क्या सच है ये जाने दो।
एक आम इनसान को खुदा की बनाई इस कायनात और खुदा की तामीर की इस दुनिया में बहुत सी बातों का गिला रहता है। एक आम आदमी की मजबूरी उसी जिं़दगी के कई फैसलों की दारोमदार होती है। एक आम आदमी को अपनी लेखनी में जीने वाला षायर निदा फाजली का कहना भी है
इतना सच बोल कि होठों की तबस्सुम न बुझे,
रोषनी खत्म न कर आगे अंधेरा होगा।
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली,
हम जिसे छोड आए वो दरिया होगा।
उसके दुषमन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा,
मेरी तरह वो भी षहर भर में तन्हा होगा।
आम आदमी के जीवन और उसके जीवन की हलचलों से बेहद करीब रहने वाल शायर निदा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ। प्रारंभिक जीवन ग्वालियर में गुजरा। निदा फाजली के काव्य संसार में बहुत व्यापक विशय है। समाज, रिष्ते-नाते, वक्त, जिं़दगी, दुनिया न जाने अपने काव्य संसार में कितने विशयों को जीया है। एहसासात की नाजुक लड़ियों में गहरे जज्बात को पिरोया है। जहां आम आदमी और उसके हक की बात आती है तो निदा फाजली लिखते हैं
किसी के घर में दीया जले अनाज भी हो,
गर यह सब न हो तो एहतिजाज भी हो।
आधुनिक गजलकारों में निदा फाजली की अपनी अलग पहचान है। अपनी तबीयत का अकेला शायर ग़ज़लकारों की भीड़ में नजर आने वाले निदा फाजली की खसूसियत उन्हें निखार कर सामने लाती है।
अस्सी के दषक में एक गीतकार के रूप में काम करने का मौका मिला। मशहूर फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही की फिल्म में षायर जां निसार अख्तर गीत लिख रहे थे, लेकिन फिल्म के निर्माण के बीच ही उनका देहांत हो गया। कमाल अमरोही निदा फाजली की शायरी से वाकिफ थे। अपनी फिल्म के बचे बाकी गीतों के लिए कमाल अमरोही ने निदा फाजली को बतौर गीतकार मौका दिया। हरियाला बनो आया री, तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, जैसे नायाब गीत निदा फाजली ने लिखे। तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, निदा फाजली के इस गीत को आवाज कब्बन मिर्जा ने दी थी। कब्बन मिर्जा का एकलौता ही गीत सुनाई पडता है। हालांकि वे एक अजीम गायक थे, लेकिन वक्त की धूल ने इनकी पहचान को धुंधला कर दिया। कब्बन मिर्जा आकाषवाणी की जानी पहचानी आवाज माने जाते थे और अक्सर दरगाहों में मर्सिया गाते थे। इस फिल्म के संगीतकार खयाम को एक ऐसी आवाज की जरूरत थी, जो एक यहूदी पर जच सके। माना जाता है उस दौर में खयाम ने कई मषहूर गायकों की आवाजों का प्रयोग किया था, उनमें महेंद्र कपूर, अनवर हुसैन जैसे गायक शामिल थे।
आखिर कब्बन मिर्जा को चुना गया था। तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है निदा फाजली के लिखे इस गीत को कब्बन मिर्जा ने ही गाया था। इस फिल्म में एक और गीत कब्बन मिर्जा ने गाया था, जो जां निसार अख्तर ने लिखा था। इस फिल्म में जहां निदा फाजली को बतौर गीतकार मौका मिला था, वहीं कब्बन मिर्जा को इस फिल्म में पहली और आखिरी बार सुना गया था। निदा फाजली ने जब मुंबई में अपने भाग्य आजमाने के लिए कदम रखे थे तो उस समय में कई कठिनाईयों का सामना करना पडा था। कई रातें किसी रेलवे प्लेटफार्म पर और कई दिन शहर की सड़कों गलियों में इधर उधर घूमते गुजरा करते थे। उन दिनों साहिर लुधियानवी जैसे अजीज दोस्त निदा के करीब थे। उन्हीं दिनों में बकौल निदा फाजली ने अपनी यह नज्म लिखी थी।
कहीं छत थी, दीवारो-दर थे कहीं
मिला मुझको घर का पता देर से
दिया तो बहुत जिं़दगी ने मुझे
मगर जो दिया वो दिया देर से
हुआ न कोई काम मामूल से
गुजारे षबो-रोज कुछ इस तरह
कभी चांद चमका गलत वक्त पर
कभी घर में सूरज उगा देर से।।
निदा फाजली ने देष की तक्सीम का दर्द भी झेला था। बंटवारे के समय उनकी मां और भाई को भारत छोड़कर पाकिस्तान जाना पडा था। निदा फाजली हिंदुस्तान में रह गए थे। निदा फाजली आज भी अपने एहसासात में मुहब्बत की आजाद खुष्बू को जीते है, उस खुष्बू को जो खुली फिजाओं की विरासत है। किसी सरहद के दायरे में सिमटती नहीं।
निदा फाजली की शायरी जहां मां की ममता का अर्थ गहराई से समझती है, वहीं बच्चों के बेहद करीब इनके एहसासात के मोती हैं।
कुछ अशआर निदा फाजली के देखिए
बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।
ऐसी ही एक नज्म हैं
घास पर खेलता है इक बच्चा
पस मां बैठी मुस्कुराती है
मुझको हैरत है जाने क्यों दुनिया
काबा ओ सोमनाथ जाती है।
निदा फाजली अपनी बेबाक शायरी के लिए कई बार विवादों में भी रहे। ऐसा एक षेर जिस पर एक मौलवी ने आपति जताई थी
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
बकौल निदा फाजली कहतें है कि मैंने बस इतना समझा है कि खुदा अपने लिए बच्चों को बनाता है और इनसान अपने लिए भगवान को बनाता हैं। निदा फाजली के काव्य संसार की व्यापकता उनकी खुली शख्सियत से ही झलकती है। वर्तमान में भी फिल्म नगरी में बतौर गीतकार मौजूद हैं।
एस-अतुल अंशुमाली