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Saturday, November 16, 2024

बुल्ले शाह जिन्होंने काफिये में पिरोई पंजाब की संस्कृति

चौदहवां दश्क भारत में दूसरे देशों से आने वाले उपद्रवियों के युद्धों का दश्क था, लेकिन इस काल में एक नई संस्कृति का भी प्रवेश हुआ और भारत में नई पुरानी संस्कृति का ऐसा संगम हुआ, जिससे यहां की संस्कृति और अमीर हो गई। हां, यही काल संत और फकीरों का काल था। इस काल में ही संत कबीर, गुरु नानक देव, संत रविदास, तुलसीदास और सूफियों में संत फरीद, मुहम्मद जायसी, निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो जैसे महान कवि हुए।

 

इसी काल में पंजाबियत का जन्म हुआ। सूफी, संतों और दरवेशों की कलम ने एक नई भाषा को जन्म दिया और इस भाषा में कई महान रचनाएं लिखी जाने लगीं। हिमाचल ब्रे किंग टीम इसी क्रम में आपके लिए पहला सूफी कवि लेकर आई है संत बुल्ले शाह। पंजाबी साहित्य में दिए जिनके योगदान व रचनाओं पर कढ़ियों में प्रस्तुति दी जाएगी। सूफी कवि बुल्ले शाह ने पंजाबी साहित्य को कई महान रचनाएं दीं, जिन्हें आज भी गाया जाता है।

 

पिता के विचारों से हुए प्रभावित, महान संत बने
बुल्ले शाह के जीवन काल का समय सन् 1680 से 1757-58 का माना जाता है। इनका जन्म स्थान उस समय काल में बहावआलपुर के गांव उच्च गलानियां में माना जाता है। ये क्षेत्र पाकिस्तान में पड़ता है। बुल्ले शाह के पिता शाह मोहम्मद दरवेश •ाी अरबी, फारसी और कुरान शरीफ का अच्छा इरफान रखते थे। शाह मोहम्मद आध्यात्मिक झुकाव वाले इनसान थे। बुल्ले शाह की एक बहन •ाी थी, जिससे बुल्ले शाह को अधिक स्नेह था। बुल्ले शाह और उनकी बहन पर अपने वालिद के उच्च चरित्र का काफी प्र•ााव था। वह •ाी बुल्ले शाह की तरह उच्च विचारों वाली थी। माना जाता है कि उन्होंने •ाी बुल्ले शाह की तरह कुंवारी रहकर •ाक्ति में अपना जीवन व्यतीत किया।

एस अतुल अंशुमाली –क्रमश:

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