शिमला : हिमाचल की लोक भाषाओं के अस्तित्व के लिये कई प्रयास किये जा रहे हैं ताकि लोक बोलियाँ और लोक संस्कृति को सहेजा जा सके। इसी के मद्देनजर अब हिमाचल प्रदेश युनिवर्सिटी लोक बोलियों और लिपि को पाठ्यक्रम में शामिल कर रही है। यह सब हिमाचल प्रदेश युनिवर्सिटी की परमार पीठ की ओर से किया जा रहा है।
परमार पीठ लोक बोलियों और लिपि को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर इस पर डिप्लोमा करवाएगी। पीठ ने हिमाचल की 13 बोलियों और नौ लिपियों पर डिप्लोमा करवाने का निर्णय लिया है। विद्यार्थी बीए के बाद डिप्लोमा कर सकते है। इस डिप्लोमा के लिये एक वर्ष की अवधि होगी। जून से विद्यार्थी प्रवेश ले सकेंगे ।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की परमार पीठ के अध्यक्ष प्रो. ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि पीठ की तरफ से पहाड़ी बोलियों और लिपि को लेकर डिप्लोमा और पीएचडी करवाने का निर्णय लिया है। जून में इसके लिए प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अध्ययन और अध्यापन में परमार चिंतन को मूल में रखा जाएगा, लेकिन बोलियों और लिपियों का अध्ययन डिप्लोमा पाठ्यक्रम और पीएचडी . करवाया जाएगा।
इन बोलियों और लिपियों पर होगा काम
हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बाली जाने वाली 13 बोलियों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। इनमें कांगड़ी, चम्बियाली, पंगवाली, कुल्लवी, सिरमौरी, महासुवी, कहलूरी, क्योंथली, बघाटी बाघली, किन्नौरी, लाहुली, कणाशी बोलियां और उप बोलियां शामिल है। इसी तरह 9 लिपियों में ब्राह्मी, खरोष्ठी, टांकरी, पावुची, भट्टाक्षरी, पण्डवाणी, चन्दवाणी, कुटिल को शामिल किया गया है।
लोक साहित्यकार भी पाठयक्रम में होंगे शामिल
बोलियों और लिपियों के अलावा प्रदेश के उन लोक साहित्यकारों के जीवन को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है जिन्होंने लोक साहित्य के क्षेत्र में योगदान दिया है। इसमें मुख्यत: गीतकार, इतिहासकार , कथाकार और नाटककार शामिल रहेंगे। उनके लोक साहित्य के क्षेत्र में किए गए कामों को डिप्लोमा और पीएचडी का हिस्सा बनाया गया है। इसको लेकर तीन महीनों में पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।
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