ग़ज़ल महज एक शब्द नहीं बल्कि कशिश, कसक, सोज़, महब्बत की वो आवाज़ जो सरहदों से ऊपर अपनी जमीन बनाती है। जहां एहसासात पिरोये जाते हैं और मुहब्बत के नाजुक जज्बात की लड़ियां बुनी जाती हैं। ग़ज़ल की ऐसी ही विरासत दीवानों ने बख्शी थी और मस्तानों ने दुनिया के कौने-कौने में इस विरासत की कंदीलें मुनव्वर की थीं। ऐसी ही ग़ज़ल की एक आवाज़ थी बेगम अख्त़र फैजाबादी। जब भी ग़ज़लख्वानी की बात की जाएगी तो बेगम अख्त़र का नाम सबसे पहले ज़हन में उभरेगा। बेगम अख्त़र ने ग़ज़ल गायकी को ऐसा मुकाम दिया, जो ग़ज़ल गायकी के उस दौर को कालजयी बनाता है।साठ के दशक में केएन सहगल ने अपनी गायकी से ग़ज़ल को एक न्या अय्याम दिया था। कोठियों में चंद लोगों की महफिल में सजने वाली, सीमित दायरे में अपने रंग बरसाने वाली ग़ज़ल को फिल्म नगरी का हिस्सा बनाया था। वहीं तलत महमूद ने रवानगी दी तो बेगम अख्तर ने आम लोगों के दिल तक ग़ज़ल को पहुंचाया। कहा जाता था कि उन दिनों जब रेडियो पर बेगम अख्तर की ग़ज़ल गूंजने लगती थी तो लोग बेगम अख्तर को सुनने के लिए वहीं ठहर जाते थे। रेडियो और दूरदर्शन पर कई ग़ज़ल प्रोग्राम बेगम अख्तर के उन दिनों रिकॉर्ड बजते थे। आम लोगों तक ग़ज़ल की दीवानगी थी। बेगम अख्तर से ग़ज़ल गायकी को जो रवानगी मिली। उसे कई गायकों ने आगे बढ़ाया। मेहंदी हसन, नूरजहां, सुरैया, मुकेश, रफी, महेंद्र कपूर, फरीदा खनन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उदास, तलज अजीज, चंदन दास, भुपेंद्र सिंह, पिनाज, मुन्नी बेगम जैसे कई गायकों ने ग़ज़ल को आम लोगों की धड़कन बनाया। ग़ज़ल आज भी अपनी वही ताजगी लिए दीवानों की महफिल की फिजाएं महका रहीं है।
जिगर से मुहब्बत और ख़त में पैग़ाम
उस दौर के मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी और बेगम अख्तर के इज़हारे-मुहब्बत का एक किस्सा है। फिराक गोरखपुरी, जोश, हफीज जालंधरी, कतील शिफाई के समकालीन जिगर मुरादाबादी आजादी के पहले और बाद के एक कामयाब शायर थे। इनका एक ग़ज़ल संग्रह “आतिशे-गुल” प्रकाशित हुआ था। जब बेगम अख्तर ने जिगर का यह ग़ज़ल संग्रह पढ़ा तो वह उनकी शायरी की काइल हो गई थीं और मन ही मन में जिगर से मुहब्बत कर बैठी थी। वह उनसे निकाह के बारे में सोच बैठी थी। जिगर का निकाह के बारे में राय जानने के लिए उन्होंने एक ख़त लिखा, जिसमें लिखा था कि जिगर जी आप के एक खूबसूरत शायर हैं । मैंने आपका ग़ज़ल संग्रह पढ़ा। मैं आपसे निकाह करना चाहती हूं। ख़त के जवाब में जिगर ने लिखा कि जरूरी नहीं कि शायर की शायरी की तरह शायर भी खूबसूरत हो। जिगर पहले से शादीशुदा थे, इसिलए यह प्रेम कहानी अधूरी रह गई । उस दौरान जिगर ने एक ग़ज़ल लिखी जो कहा जाता है कि उन्होंने यह ग़ज़ल बेगम अख्तरी के लिए लिखी थी।
“दिल में किसी की राह किए जा रहा हूं मैं,
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूं मैं।
फर्दे-अमल सियाह किए जा रहा हूं मैं,
रहमत को बेपनाह किए जा रहा हूं मैं।
ऐसी भी इक निगाह किए जा रहा हूं मैं,
जर्रों को मेहरो-माह किए जा रहा हूं मैं।
मुझसे लगे हैं इश्क की अज़मत को चार चांद,
खुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूं मैं।“
इन शायरों की ग़ज़लों को दी आवाज
बेगम अख्तरी ने मिर्जा गालिब, मिर्जा सौदा, आतिश, मोमिन खां मोमिन, इब्राहीम जौक़, दाग, मीर तकी मीर, ख्वाजा मीर दर्द, अमीर मिनाई जैसे नामचीं शायरों से लेकर अपने दौर के शायर जिगर मुरादाबादी, शकील बंदायुनी, जैसे शायरों की ग़ज़लें गाईं। बेगम अख्तरी ने सतर दशक में सुदर्शन फाकिर की भी रचनाएं गाईं थीं। ग़ज़ल के अलावा, दादरा, ठुमरी व अन्य रागों व गायन में भी बेगम अख्तरी को महारत हासिल थी। नूरजहां, राजकुमारी, मलिका पुखराज, शमशाद बेगम, सुरैया जैसी गायिकाएं इनकी समकालीन थीं और केएन सहगल, सुरेंद्र, तलत महमूद, रफी, मुकेश, मेहंदी हसन जैसे ग़ज़ल गायक थे।
शौहर ने जब गायकी पर लगाई पाबंदी तो हो गईं थी बीमार
बेगम की गजल गायकी से मुतासिर होकर उस समय के एक मशहूर वकील इश्तियाक मोहम्मद खान ने बेगम अख्तरी से निकाह किया था, लेकिन निकाह के बाद कहा जाता है बेगम के शौहर ने उन्हें गाने के लिए सख्त मनाही दी थी। इससे बेगम उदास रहने लगी थीं और बीमार भी रहने लगी थीं। जब किसी डाक्टर से इलाज न हो पाया तो बेगम की बिगड़ती हालत को देखकर उनके शौहर ने गाने की इज़ाजत दे दी। बेगम ने फिर से गाना शुरू कर दिया। चंद दिनों में ही बेगम का स्वस्थ्य भी ठीक हो गया।
-एस–अतुल अंशुमाली
बहुत सुन्दर आलेख ढेर सारी बधाईजी।