आदमी को जिंदगी के तुजुर्बात उसके उम्र के गुजरने से नहीं हासिल होते, बल्कि जिंदगी से जूझने से हासिल होते है। उम्र महज एक आंकड़ा है पीरी का ग्राफ नहीं। नववर्ष पर हम ऐसे ही एक उम्र से जवान और जेहन ओ दिल से पीर शायर ऋषभ शर्मा से अपने पाठकों को रू-ब-रू करवा रहे हैं। गौरवान्वित करता हैं कि महज बीस साल का यह शायर बहुत गहरी ग़ज़लें कहता है। ऋषभ शर्मा हिमाचल के जिला हमीरपुर के पन्याली गांव से ताल्लुक रखते हैं और दिल्ली में परिवार के साथ रहते हैं। अपनी ग़ज़लों में हकीकत बयान करने वाले इस शायर ने नववर्ष पर अपनी एक ग़ज़ल पाठकों का नज़र की है।
शायर ऋषभ शर्मा की तीन ग़ज़लें
ग़ज़ल
झूठे ख़ुदा की बंदगी में आग लग गई
मुझको भी ख़ुद सुपुर्दगी में आग लग गई
मेरी तरफ़ से मैंने उसे फूल क्या दिया
दोनों तरफ़ से दोस्ती में आग लग गई
कुछ लोग मेरी ज़िन्दगी में ख़ास लोग थे
उनको भी मेरी रोशनी में आग लग गई
बादल हमारे गांव से आगे निकल गए
फ़सलें उजड़ गईं नदी में आग लग गई
बिरहा के दुख संजो के मैंने शे’र क्या कहे
उस्ताद मेरी शाइरी में आग लग गई
इक दिन हमारे सर से कोई हाथ उठ गया
इक दिन हमारी ज़िन्दगी में आग लग गई
ग़ज़ल
उदास लड़कियों से राब्ता निभाता हूँ
मैं एक फूल हूं जो…तितलियां बचाता हूँ
जी मैं ही इश्क़ में हारे हुओं का मुरशिद हूँ
जी मैं ही हर सदी में क़ैस बन के आता हूँ
सताई होती हैं जो आपके समंदर की
मैं ऐसी मछलियों के साथ ग़ोते खाता हूं
किसी के वास्ते काँटे नहीं बिछाता मैं
मगर यूं भी नहीं के काँटों को हटाता हूँ
मैं मौसमी हँसी का मारा हूं कि कोई दिन
मैं साल भर में कोई दिन ही मुस्कुराता हूँ
बदन भी आते हैं और हिचकियां भी आती हैं
मैं जिनको भूल गया उनको याद आता हूँ
निभाने जैसा तो कुछ भी नहीं है उसमें मगर
वो मर न जाए कहीं इसलिए निभाता हूँ
ग़ज़ल
किसी के साथ हूं..पर हूं किसी की आंखों में
मैं धूल झोंकता हूं ज़िन्दगी की आंखों में
बिछड़ के मुझसे वो.. ख़ुद को तलाश करने लगी
तलाश भी किसी और आदमी की आंखों में
ख़ुदा करे कि मुझे हंसते हंसते आप मिलें
कि चांदनी न लगे चांदनी की आंखों में
खुले गगन के तले नाचने का मन है बस
किसी का ख़्वाब नहीं मोरनी की आंखों में
सिसक सिसक के मुझे कह रहीं थीं ..जाओ मत
हज़ार चीख़ें थीं उन ख़ामोशी की आंखों में
शायर : ऋषभ शर्मा