मुहब्बत की शायरी जिसमें बस हुस्ने-जानां की कल्पना। उर्दू शायरी ऐसे दौर से शुरू होती है, जिसमें महबूब का ख्याल और उसके तसव्वुरात की किनायतें ही अयां अपनी नज्“मात में एक महबूब शायर करता था। कभी महबूब की हिज्र में तो कभी विसाले-यार में। गालिब ने एक जा अपनी शायरी में कहा भी है,
गम अगरचे जांगुसिल कितना नाजुक है यह दिल,
जो गम-ए-इश्क न होता, तो गम-ए-रोजगार होता।
गालिब के बाद कई अय्याम आए शायरी की दुनिया के और कई तब्दीलियां भी देखने को मिलीं। हम उस दौर की बातें करते है जब दुनिया का हर नौजवां हक और इंकलाब की बातें करने लगा था। भारत ने अपनी आजादी के अभी कुछ साल ही देखे थे, इस दौर में और भी कई देशों के संघर्ष देखे गए थे, जिनका असर भारत पर भी साफ था। इस दौर में मार्स्कवाद की विचारधारा, गांधीवाद के सिंद्धातों ने दुनिया को प्रभावित किया। भारत अपनी नई आजादी को अभी संवार ही रहा था और कई चीजों के लिए संघर्षरत था। उसी दौर में भारत के प्रधानमंत्री के लंदन दौरे पर इस बेबाक, क्रांतिकारी शायर ने देश के संघर्षरत हालात से परेशान होकर देश के उस समय के प्रधानमंत्री पर ऐसी कविता लिख डाली थी, जिसके लिए इस शायर को जेल भी जाना पड़ा था। कहा जाता है कि अपने उन्हीं दिनों से प्रभावित होकर इस शायर ने लिखा था।
हमको रोकेगी क्या जिंदाने-बला मजरूह
हम तो आवाज हैं, दीवारों से छन जाते हैं।
मजरूह का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था। मजरूह ने अपनी शिक्षा उर्दू-फारसी जुबान से की थी। इनकी भाषा में अवधी का असर देखने को मिलता है। अधिकतर गीतों में अवधी भाषा व खड़ी बोली हिंदी का गहरा पुट मजरूह के गीतों की शब्दावली में रहा। महरूह यूपी के सुल्तानपूर में दवाखाना चलाया करते थे, तो साथ इनको शायरी का बेहद शौक था। वह अक्सर अपने दवाखाना में शायरी की महफिल सजा दिया करते थे।
जिगर मुराराबादी शायरी के हुए कायल, ए एस किरदार ने फिल्मों में दिया मौका
मरीज उनके पास बीमारी की चारागरी के लिए आते तो साथ शायरी से रूह का सकूं लिए जाते थे। ऐसे ही एक दिन महरूह के शायरी के प्रति गहरे लगाव को देखते हुए एक व्यक्ति ने उन्हें मुशायरे में भाग लेने के लिए कहा। पहले पहल मजरूह ने उसे गंभीरत से नहीं लिया। एक दिन उसी इलाके में जिला स्तरीय मुशायरे में भाग लेने के लिए मजरूह चले गए। उस मुशायरे में उस दौर के मशहूर शायर जिगर मुराराबादी ने शिरकत की थी। उसी मुशायरे में उन्होंने मजरूह की लाजवाब शायरी को सुना। जिगर मजरूह की शायरी से बेहद मुतास्सिर हुए। वे मजरूह को अपने साथ मुंबई एक बड़े मुशायरे के आयोजन में ले गए। उस मुशायरे में उस दौर के मशहुर कामयाब फिल्मकार ए एस कारदार भी शरीक थे। क्रमश :
–एस अतुल अंशुमाली